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कतै लडें, फूत्त कतै उचालियें | कतै लडें, फूत्त कतै उचालियें | ||
::कतै गडें, हूत्त | ::कतै गडें, हूत्त कतै म फालियें ॥ | ||
कतै म घुप्लुक्क भयें, अतालियें | कतै म घुप्लुक्क भयें, अतालियें | ||
::कताकताबाट कतै पतालियें ! ॥ | ::कताकताबाट कतै पतालियें ! ॥ |
Revision as of 09:01, 18 April 2025
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यता महासिन्धु महा भयावह
असाध्य नीलो नभको उता दह ॥
थियेन आधार, गुहार, सान्त्वन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६४
कठै !! म सानू तृण झै बतासमा
भयें विपत्ता बिचरो अत्यासमा ॥
शकिन्न त्यो दुःख सबै बताउन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६५
कतै लडें, फूत्त कतै उचालियें
कतै गडें, हूत्त कतै म फालियें ॥
कतै म घुप्लुक्क भयें, अतालियें
कताकताबाट कतै पतालियें ! ॥
६६
उठेर ठाडै म कतै बतासियें
कतै गला बन्द भयो निसासियें ॥
कतै गरें घोर तरङ्ग लङ्घन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६७