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मुनिका उस सूक्तिसिन्धुको | मुनिका उस सूक्तिसिन्धुको | ||
::रस प्यूँदा हरएक | ::रस प्यूँदा हरएक बिन्दुको । | ||
मनले गहिरो मनुष्यता | मनले गहिरो मनुष्यता | ||
::पहिचान्यो, तर त्यो कता | ::पहिचान्यो, तर त्यो कता कता ॥ | ||
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हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन चरी | हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन चरी | ||
::उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन | ::उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन गरी । | ||
चल्यो व्याधा, साथै पवन पनि तातो हररर, | चल्यो व्याधा, साथै पवन पनि तातो हररर, | ||
::बह्यो मानू सारा प्रकृतिपथमा भित्र | ::बह्यो मानू सारा प्रकृतिपथमा भित्र जहर ॥ | ||
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Revision as of 20:44, 6 May 2025
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सप्तम विश्राम
१
मुनिका उस सूक्तिसिन्धुको
रस प्यूँदा हरएक बिन्दुको ।
मनले गहिरो मनुष्यता
पहिचान्यो, तर त्यो कता कता ॥
२
हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन चरी
उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन गरी ।
चल्यो व्याधा, साथै पवन पनि तातो हररर,
बह्यो मानू सारा प्रकृतिपथमा भित्र जहर ॥