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श्री गौरीशङ्कराभ्यां नम:
तरुण तपसी
प्रथम विश्राम
१
रसीलो वर्षाको समय, दिन लम्बा, दिनकर
थिये क्यै ढल्केका गगनतलमा पश्चिमतिर।
त्यसै बेला घुम्दै विजन पथको पादपमनि
पुगे कोही यौटा कविवर बिसाऊँ अब भनी।।
२
मजाको चौतारी, वरपर सबै शून्य विजन
निकै टाढा पर्थे भवन, वन, वस्ती, उपवन।
बहन्थिन् सामुन्ने कलकल नदी पुण्यसलिला
अनेकौं देखिन्थे तटनिकटमा सुन्दर शिला।।