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→Not proofread: Created page with "<noinclude>{{start center block}}</noinclude> <poem> स्वरूप त्यो किन्तु सफा जहाँतक झलक्क झल्कन्न पुरा वहाँतक ॥ न छुट्छ आसक्ति न फन्फनेपन तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ {{pcn|९२}} लिएर आसक्ति भएर निर्घिनी महेन्द्र-सिंह..." |
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स्वरूप त्यो किन्तु सफा जहाँतक | स्वरूप त्यो किन्तु सफा जहाँतक | ||
झलक्क झल्कन्न पुरा वहाँतक ॥ | ::झलक्क झल्कन्न पुरा वहाँतक ॥ | ||
न छुट्छ आसक्ति न फन्फनेपन | न छुट्छ आसक्ति न फन्फनेपन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|९२}} | {{pcn|९२}} | ||
लिएर आसक्ति भएर निर्घिनी | लिएर आसक्ति भएर निर्घिनी | ||
महेन्द्र-सिंहासनमा गए पनी ॥ | ::महेन्द्र-सिंहासनमा गए पनी ॥ | ||
उही छ औडाह उही छ भर्मन | उही छ औडाह उही छ भर्मन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|९३}} | {{pcn|९३}} | ||
तसर्थ मेरा स्थिर दृष्टिकोणमा | तसर्थ मेरा स्थिर दृष्टिकोणमा | ||
पसी अनासक्ति सफा गरी जमा ॥ | ::पसी अनासक्ति सफा गरी जमा ॥ | ||
हुनेछ साह्रै झलमल्ल जीवन | हुनेछ साह्रै झलमल्ल जीवन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|९४}} | {{pcn|९४}} | ||
न पूर्ण आसक्ति भलो छ वास्तव | न पूर्ण आसक्ति भलो छ वास्तव | ||
न पूर्ण कैवल्य तुरुन्त संभव ! | ::न पूर्ण कैवल्य तुरुन्त संभव ! | ||
अलिप्त गुप्ती हुनुपर्छ लोचन | अलिप्त गुप्ती हुनुपर्छ लोचन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|९५}} | {{pcn|९५}} | ||
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Revision as of 09:53, 17 April 2025
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स्वरूप त्यो किन्तु सफा जहाँतक
झलक्क झल्कन्न पुरा वहाँतक ॥
न छुट्छ आसक्ति न फन्फनेपन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
९२
लिएर आसक्ति भएर निर्घिनी
महेन्द्र-सिंहासनमा गए पनी ॥
उही छ औडाह उही छ भर्मन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
९३
तसर्थ मेरा स्थिर दृष्टिकोणमा
पसी अनासक्ति सफा गरी जमा ॥
हुनेछ साह्रै झलमल्ल जीवन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
९४
न पूर्ण आसक्ति भलो छ वास्तव
न पूर्ण कैवल्य तुरुन्त संभव !
अलिप्त गुप्ती हुनुपर्छ लोचन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
९५