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बडो विशाल गम्भीर नील आकाश झैं वन। | बडो विशाल गम्भीर नील आकाश झैं वन। | ||
झल्कन्छन् फूलका गुच्छा तारकातुल्य शोभन।। | झल्कन्छन् फूलका गुच्छा तारकातुल्य शोभन।। | ||
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वनका बीचमा यौटा सिक्रो वृक्ष शरीर यो। | वनका बीचमा यौटा सिक्रो वृक्ष शरीर यो। | ||
बल विद्या गुमायेको भारतैतुल्य देखियो।। | बल विद्या गुमायेको भारतैतुल्य देखियो।। | ||
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लताजञ्जालले ज्यादा जकडेका कुनै रुख। | लताजञ्जालले ज्यादा जकडेका कुनै रुख। | ||
पापका बोझले ग्रस्त पापी झैं छन् अधोमुख।। | पापका बोझले ग्रस्त पापी झैं छन् अधोमुख।। | ||
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लर्काई सुनगाभाको पुष्पहार कुनै रुख। | लर्काई सुनगाभाको पुष्पहार कुनै रुख। | ||
विलासी झैं डटेका छन् देखाई हँसिलो मुख।। | विलासी झैं डटेका छन् देखाई हँसिलो मुख।। | ||
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साना ऐसेलुका दाना टिपदा ती टपाटप। | साना ऐसेलुका दाना टिपदा ती टपाटप। | ||
ग्रामीण नारी सम्झन्छन् कानमा सुनका टप।। | ग्रामीण नारी सम्झन्छन् कानमा सुनका टप।। | ||
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निस्के नयाँ नयाँ लाखौं वृक्षमा मञ्जु मञ्जरी। | निस्के नयाँ नयाँ लाखौं वृक्षमा मञ्जु मञ्जरी। | ||
रसिला प्रतिभाशाली कविका कवितासरी।। | रसिला प्रतिभाशाली कविका कवितासरी।। | ||
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ऋषि झैं गरदै शुद्ध मञ्जरीमय भोजन। | ऋषि झैं गरदै शुद्ध मञ्जरीमय भोजन। | ||
रातैमा कोइली लाग्यो स्वर्गीय सुर साधन।। | रातैमा कोइली लाग्यो स्वर्गीय सुर साधन।। | ||
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माधुर्यसिन्धुको यौटा उर्लंदो लहरीमय। | माधुर्यसिन्धुको यौटा उर्लंदो लहरीमय। | ||
त्यो दिव्य स्वरले गर्छ सारा हृदय तन्मय।। | त्यो दिव्य स्वरले गर्छ सारा हृदय तन्मय।। | ||
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अदना त्यो चरीलाई त्यो स्वर्गीय सरीगम। | अदना त्यो चरीलाई त्यो स्वर्गीय सरीगम। | ||
सघाउने विधाताको धन्य हो त्यो परिश्रम।। | सघाउने विधाताको धन्य हो त्यो परिश्रम।। | ||
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Revision as of 07:29, 10 April 2025
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६१
बडो विशाल गम्भीर नील आकाश झैं वन।
झल्कन्छन् फूलका गुच्छा तारकातुल्य शोभन।।
६२
वनका बीचमा यौटा सिक्रो वृक्ष शरीर यो।
बल विद्या गुमायेको भारतैतुल्य देखियो।।
६३
लताजञ्जालले ज्यादा जकडेका कुनै रुख।
पापका बोझले ग्रस्त पापी झैं छन् अधोमुख।।
६४
लर्काई सुनगाभाको पुष्पहार कुनै रुख।
विलासी झैं डटेका छन् देखाई हँसिलो मुख।।
६५
साना ऐसेलुका दाना टिपदा ती टपाटप।
ग्रामीण नारी सम्झन्छन् कानमा सुनका टप।।
६६
निस्के नयाँ नयाँ लाखौं वृक्षमा मञ्जु मञ्जरी।
रसिला प्रतिभाशाली कविका कवितासरी।।
६७
ऋषि झैं गरदै शुद्ध मञ्जरीमय भोजन।
रातैमा कोइली लाग्यो स्वर्गीय सुर साधन।।
६८
माधुर्यसिन्धुको यौटा उर्लंदो लहरीमय।
त्यो दिव्य स्वरले गर्छ सारा हृदय तन्मय।।
६९
अदना त्यो चरीलाई त्यो स्वर्गीय सरीगम।
सघाउने विधाताको धन्य हो त्यो परिश्रम।।