Page:Ritubichar.pdf/12: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | <noinclude>{{start center block}}</noinclude> | ||
<poem> | <poem> | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५२}} | ||
झर्दछन् भेटनाबाट पुराना पुष्प बर्बरी। | झर्दछन् भेटनाबाट पुराना पुष्प बर्बरी। | ||
स्वर्गीय पुण्यको भोग सकेका पुण्यवान्सरी।। | स्वर्गीय पुण्यको भोग सकेका पुण्यवान्सरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५३}} | ||
हावाको चालमा सारा पराग गगनैभरी। | हावाको चालमा सारा पराग गगनैभरी। | ||
फैलिँदो छ कविद्वारा वीरको वीरतासरी।। | फैलिँदो छ कविद्वारा वीरको वीरतासरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५४}} | ||
परागै हो कि? त्यो माथि तुवाँलाको स्वरूपमा। | परागै हो कि? त्यो माथि तुवाँलाको स्वरूपमा। | ||
घाम केही फिका पारी चढेको अन्तरिक्षमा।। | घाम केही फिका पारी चढेको अन्तरिक्षमा।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५५}} | ||
तुवाँलाबाट निस्केका सूर्यको कान्ति माधुरी। | तुवाँलाबाट निस्केका सूर्यको कान्ति माधुरी। | ||
झल्कन्छ वनमा मानू सुनको तपकैसरी।। | झल्कन्छ वनमा मानू सुनको तपकैसरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५६}} | ||
वसन्तले बुनी आफैं मिही पल्लव चादर। | वसन्तले बुनी आफैं मिही पल्लव चादर। | ||
माथमा वनदेवीको चढायो कि मनोहर?।। | माथमा वनदेवीको चढायो कि मनोहर?।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५७}} | ||
प्रत्येक वृक्षमा निस्क्यो पुष्पपल्लवमाधुरी। | प्रत्येक वृक्षमा निस्क्यो पुष्पपल्लवमाधुरी। | ||
संसार जीवको रागी वासना झैं थरीथरी।। | संसार जीवको रागी वासना झैं थरीथरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५८}} | ||
अशोक, महुवा, पैञ्यू, जम्बू, बकुल, चम्पक। | अशोक, महुवा, पैञ्यू, जम्बू, बकुल, चम्पक। | ||
पलाशाऽऽदि सबै वृक्ष पुष्पले छन् झकाझक।। | पलाशाऽऽदि सबै वृक्ष पुष्पले छन् झकाझक।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|५९}} | ||
कुनै राता, कुनै सेता, पहेंला भावका कुनै। | कुनै राता, कुनै सेता, पहेंला भावका कुनै। | ||
कुनै सुनौला देखिन्छन्, आस्मानी रङ्गका कुनै।। | कुनै सुनौला देखिन्छन्, आस्मानी रङ्गका कुनै।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६०}} | ||
सिन्दुरे वन लक्ष्मीका स्यूँदाको सिन्दुरैसरी। | सिन्दुरे वन लक्ष्मीका स्यूँदाको सिन्दुरैसरी। | ||
देखिन्छ माझमा राम्रो तलके तिलकैसरी।। | देखिन्छ माझमा राम्रो तलके तिलकैसरी।। | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Revision as of 07:28, 10 April 2025
This page has not been proofread
५२
झर्दछन् भेटनाबाट पुराना पुष्प बर्बरी।
स्वर्गीय पुण्यको भोग सकेका पुण्यवान्सरी।।
५३
हावाको चालमा सारा पराग गगनैभरी।
फैलिँदो छ कविद्वारा वीरको वीरतासरी।।
५४
परागै हो कि? त्यो माथि तुवाँलाको स्वरूपमा।
घाम केही फिका पारी चढेको अन्तरिक्षमा।।
५५
तुवाँलाबाट निस्केका सूर्यको कान्ति माधुरी।
झल्कन्छ वनमा मानू सुनको तपकैसरी।।
५६
वसन्तले बुनी आफैं मिही पल्लव चादर।
माथमा वनदेवीको चढायो कि मनोहर?।।
५७
प्रत्येक वृक्षमा निस्क्यो पुष्पपल्लवमाधुरी।
संसार जीवको रागी वासना झैं थरीथरी।।
५८
अशोक, महुवा, पैञ्यू, जम्बू, बकुल, चम्पक।
पलाशाऽऽदि सबै वृक्ष पुष्पले छन् झकाझक।।
५९
कुनै राता, कुनै सेता, पहेंला भावका कुनै।
कुनै सुनौला देखिन्छन्, आस्मानी रङ्गका कुनै।।
६०
सिन्दुरे वन लक्ष्मीका स्यूँदाको सिन्दुरैसरी।
देखिन्छ माझमा राम्रो तलके तिलकैसरी।।