Page:Ritubichar.pdf/77: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | <noinclude>{{start center block}}</noinclude> | ||
<poem> | <poem> | ||
{{pcn|}} | {{pcn|९७}} | ||
जडेको छ जथाभावी अवीर पुरमा सब। | जडेको छ जथाभावी अवीर पुरमा सब। | ||
लोकमा वीरकै हुन्छ प्रतिष्ठा, मान, गौरव।। | लोकमा वीरकै हुन्छ प्रतिष्ठा, मान, गौरव।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|९८}} | ||
वसन्ती रङ्गका वस्त्र पहिरीकन अङ्गमा। | वसन्ती रङ्गका वस्त्र पहिरीकन अङ्गमा। | ||
क्या मजाले डुबेको छ दुनियाँ रसरङ्गमा।। | क्या मजाले डुबेको छ दुनियाँ रसरङ्गमा।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|९९}} | ||
यो हो श्रीकृष्णलीलाको रश्मि यौटा पुरातन। | यो हो श्रीकृष्णलीलाको रश्मि यौटा पुरातन। | ||
प्रकाश जसको हामी लिंदै छौं अझ पावन।। | प्रकाश जसको हामी लिंदै छौं अझ पावन।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|१००}} | ||
पूर्णिमा तिथि हो आज पूर्ण भो शिशिरस्थिति। | पूर्णिमा तिथि हो आज पूर्ण भो शिशिरस्थिति। | ||
भोलि अवश्य देखिन्छ वसन्त मधुराऽऽकृति।। | भोलि अवश्य देखिन्छ वसन्त मधुराऽऽकृति।। | ||
१ | १ | ||
{{pcn|}} | {{pcn|१०१}} | ||
सकल ऋतुविचार प्रेमका साथ हेरी | सकल ऋतुविचार प्रेमका साथ हेरी | ||
गुण जति लिनुहोला दोषलाई नटेरी। | गुण जति लिनुहोला दोषलाई नटेरी। |
Revision as of 09:32, 11 April 2025
This page has not been proofread
९७
जडेको छ जथाभावी अवीर पुरमा सब।
लोकमा वीरकै हुन्छ प्रतिष्ठा, मान, गौरव।।
९८
वसन्ती रङ्गका वस्त्र पहिरीकन अङ्गमा।
क्या मजाले डुबेको छ दुनियाँ रसरङ्गमा।।
९९
यो हो श्रीकृष्णलीलाको रश्मि यौटा पुरातन।
प्रकाश जसको हामी लिंदै छौं अझ पावन।।
१००
पूर्णिमा तिथि हो आज पूर्ण भो शिशिरस्थिति।
भोलि अवश्य देखिन्छ वसन्त मधुराऽऽकृति।।
१
१०१
सकल ऋतुविचार प्रेमका साथ हेरी
गुण जति लिनुहोला दोषलाई नटेरी।
भनि सकल गुणीका सामने भक्तिसाथ
अतिशय झुकि बिन्ती गर्छ यो लेखनाथ।।
इति शिशिर-विचार
समाप्तं शुभम्