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त्यो हंसगतिले चल्छ जल निर्मल सुस्तरी। | त्यो हंसगतिले चल्छ जल निर्मल सुस्तरी। | ||
लययुक्त महात्माको चित्तको कलनासरी।। | लययुक्त महात्माको चित्तको कलनासरी।। | ||
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हंसहंसी दुवै बाँडी मृणाल मुखमा धरी। | हंसहंसी दुवै बाँडी मृणाल मुखमा धरी। | ||
देखाउँछन् बडो राम्रो दाम्पत्यप्रेममाधुरी।। | देखाउँछन् बडो राम्रो दाम्पत्यप्रेममाधुरी।। | ||
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धन, धर्म दुवै धान्नै धान्यगौरवले उता। | धन, धर्म दुवै धान्नै धान्यगौरवले उता। | ||
खेतमा भरियो भारी भरिलो रमणीयता।। | खेतमा भरियो भारी भरिलो रमणीयता।। | ||
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जीवनाऽऽनन्दको ज्योति प्रजाको स्वच्छ शीतल। | जीवनाऽऽनन्दको ज्योति प्रजाको स्वच्छ शीतल। | ||
बयेली धानमा खेल्छ गर्दै नयनमङ्गल।। | बयेली धानमा खेल्छ गर्दै नयनमङ्गल।। | ||
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एकैनास पसायेका अर्धचन्द्रसमानका। | एकैनास पसायेका अर्धचन्द्रसमानका। | ||
बाला लहबरी गर्दै झुल्दछन् खूब धानका।। | बाला लहबरी गर्दै झुल्दछन् खूब धानका।। | ||
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झुकेको छ सबै धान्य ठाडो छैन कुनै पनि। | झुकेको छ सबै धान्य ठाडो छैन कुनै पनि। | ||
उपकारी गुणी व्यक्ति यस्तै हुन्छ जहाँ पनि।। | उपकारी गुणी व्यक्ति यस्तै हुन्छ जहाँ पनि।। | ||
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खेतको मोहिनी शोभा हेरदाहेरदैमहाँ। | खेतको मोहिनी शोभा हेरदाहेरदैमहाँ। | ||
ब्रह्ममा ब्रह्मवेत्ता झैं लीन हुन्छ मनै वहाँ।। | ब्रह्ममा ब्रह्मवेत्ता झैं लीन हुन्छ मनै वहाँ।। | ||
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बदामी रङ्गको राम्रो देखदा खेतको छवि। | बदामी रङ्गको राम्रो देखदा खेतको छवि। | ||
केशरी बागमा पुग्छन् उपमा खोजदै कवि।। | केशरी बागमा पुग्छन् उपमा खोजदै कवि।। | ||
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कृषिको श्रमसाफल्य देखनाले प्रजा सब। | कृषिको श्रमसाफल्य देखनाले प्रजा सब। | ||
परमाऽऽनन्द पायेको योगी झैं छ खुशी अब।। | परमाऽऽनन्द पायेको योगी झैं छ खुशी अब।। | ||
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Revision as of 08:06, 10 April 2025
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६१
त्यो हंसगतिले चल्छ जल निर्मल सुस्तरी।
लययुक्त महात्माको चित्तको कलनासरी।।
६२
हंसहंसी दुवै बाँडी मृणाल मुखमा धरी।
देखाउँछन् बडो राम्रो दाम्पत्यप्रेममाधुरी।।
६३
धन, धर्म दुवै धान्नै धान्यगौरवले उता।
खेतमा भरियो भारी भरिलो रमणीयता।।
६४
जीवनाऽऽनन्दको ज्योति प्रजाको स्वच्छ शीतल।
बयेली धानमा खेल्छ गर्दै नयनमङ्गल।।
६५
एकैनास पसायेका अर्धचन्द्रसमानका।
बाला लहबरी गर्दै झुल्दछन् खूब धानका।।
६६
झुकेको छ सबै धान्य ठाडो छैन कुनै पनि।
उपकारी गुणी व्यक्ति यस्तै हुन्छ जहाँ पनि।।
६७
खेतको मोहिनी शोभा हेरदाहेरदैमहाँ।
ब्रह्ममा ब्रह्मवेत्ता झैं लीन हुन्छ मनै वहाँ।।
६८
बदामी रङ्गको राम्रो देखदा खेतको छवि।
केशरी बागमा पुग्छन् उपमा खोजदै कवि।।
६९
कृषिको श्रमसाफल्य देखनाले प्रजा सब।
परमाऽऽनन्द पायेको योगी झैं छ खुशी अब।।