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छिन्नभिन्न गर्यो मैला भलले मार्ग बेसरी। | छिन्नभिन्न गर्यो मैला भलले मार्ग बेसरी। | ||
पाखण्डी लतले हाम्रो राम्रो वेदपथैसरी।। | पाखण्डी लतले हाम्रो राम्रो वेदपथैसरी।। | ||
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नौनीसमान वर्षाले गालेको भूमिभाग यो। | नौनीसमान वर्षाले गालेको भूमिभाग यो। | ||
करुणाले पगालेको सज्जनैतुल्य देखियो।। | करुणाले पगालेको सज्जनैतुल्य देखियो।। | ||
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कुल्चदामा पनी गज्ज पर्ने मूर्खसमानको। | कुल्चदामा पनी गज्ज पर्ने मूर्खसमानको। | ||
हिलो संसारमा निस्क्यो मूर्ति झैं अपमानको।। | हिलो संसारमा निस्क्यो मूर्ति झैं अपमानको।। | ||
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लोकोपकारमा जत्ति खर्चन्छ जलसम्पति। | लोकोपकारमा जत्ति खर्चन्छ जलसम्पति। | ||
उत्ती उज्यालो देखिन्छ मेघको वदनद्युति।। | उत्ती उज्यालो देखिन्छ मेघको वदनद्युति।। | ||
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बाँध बाँधीदिंदा सोझै चढ्यो पानी कुलाभरी। | बाँध बाँधीदिंदा सोझै चढ्यो पानी कुलाभरी। | ||
चित्त रोकी सुषुम्णामा लगेको प्राण झैं गरी।। | चित्त रोकी सुषुम्णामा लगेको प्राण झैं गरी।। | ||
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बेसरी गाँजियो रोपो कुलाको जलले गरी। | बेसरी गाँजियो रोपो कुलाको जलले गरी। | ||
पुर्खाको धर्मधाराले पह्लायेको कुलैसरी।। | पुर्खाको धर्मधाराले पह्लायेको कुलैसरी।। | ||
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खस्क्यो पर्वतको शोभा अनेक पहिरा परी। | खस्क्यो पर्वतको शोभा अनेक पहिरा परी। | ||
दुःखका चोटले गर्दा धीरको धीरतासरी।। | दुःखका चोटले गर्दा धीरको धीरतासरी।। | ||
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अघिका खुर्खुरे नाङ्गा तुच्छ डाँडाहरू पनि। | अघिका खुर्खुरे नाङ्गा तुच्छ डाँडाहरू पनि। | ||
तृणसम्पत्ति पायेर बनेर सौन्दर्यका धनी।। | तृणसम्पत्ति पायेर बनेर सौन्दर्यका धनी।। | ||
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ग्रीष्मतप्त वसन्तश्री नुहाई पोखरीमहाँ। | ग्रीष्मतप्त वसन्तश्री नुहाई पोखरीमहाँ। | ||
हाँस्तै जुर्लुङ्ग निस्किन् कि पद्मका रूपभा अहा?।। | हाँस्तै जुर्लुङ्ग निस्किन् कि पद्मका रूपभा अहा?।। | ||
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Revision as of 07:55, 10 April 2025
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६१
छिन्नभिन्न गर्यो मैला भलले मार्ग बेसरी।
पाखण्डी लतले हाम्रो राम्रो वेदपथैसरी।।
६२
नौनीसमान वर्षाले गालेको भूमिभाग यो।
करुणाले पगालेको सज्जनैतुल्य देखियो।।
६३
कुल्चदामा पनी गज्ज पर्ने मूर्खसमानको।
हिलो संसारमा निस्क्यो मूर्ति झैं अपमानको।।
६४
लोकोपकारमा जत्ति खर्चन्छ जलसम्पति।
उत्ती उज्यालो देखिन्छ मेघको वदनद्युति।।
६५
बाँध बाँधीदिंदा सोझै चढ्यो पानी कुलाभरी।
चित्त रोकी सुषुम्णामा लगेको प्राण झैं गरी।।
६६
बेसरी गाँजियो रोपो कुलाको जलले गरी।
पुर्खाको धर्मधाराले पह्लायेको कुलैसरी।।
६७
खस्क्यो पर्वतको शोभा अनेक पहिरा परी।
दुःखका चोटले गर्दा धीरको धीरतासरी।।
६८
अघिका खुर्खुरे नाङ्गा तुच्छ डाँडाहरू पनि।
तृणसम्पत्ति पायेर बनेर सौन्दर्यका धनी।।
६९
ग्रीष्मतप्त वसन्तश्री नुहाई पोखरीमहाँ।
हाँस्तै जुर्लुङ्ग निस्किन् कि पद्मका रूपभा अहा?।।