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काव्यका रसमा लोभी कवि झैं लट्ठ भैकन। | काव्यका रसमा लोभी कवि झैं लट्ठ भैकन। | ||
प्रत्येक पुष्पमा थाले भुमराहरु झुम्मिन।। | प्रत्येक पुष्पमा थाले भुमराहरु झुम्मिन।। | ||
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आनन्दी पुष्पमा कालो दुःखरेखासमानको। | आनन्दी पुष्पमा कालो दुःखरेखासमानको। | ||
तुच्छ त्यो भ्रमरश्रेणी के होला पात्र मानको?।। | तुच्छ त्यो भ्रमरश्रेणी के होला पात्र मानको?।। | ||
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गुणीका गुण झैं सारा रसधारा चुमीकन। | गुणीका गुण झैं सारा रसधारा चुमीकन। | ||
भूँभूँ गरी उडीदिन्छ स्वार्थी भ्रमरको गण।। | भूँभूँ गरी उडीदिन्छ स्वार्थी भ्रमरको गण।। | ||
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रसवेतनका लोभी यद्वा भ्रमरशिक्षक। | रसवेतनका लोभी यद्वा भ्रमरशिक्षक। | ||
आफनू जीविका गर्छन् पढाई पुष्पबालक।। | आफनू जीविका गर्छन् पढाई पुष्पबालक।। | ||
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हाँसी मुसुक्क बिस्तारै शिर हल्लाउँछन् फुल। | हाँसी मुसुक्क बिस्तारै शिर हल्लाउँछन् फुल। | ||
भुमराको उही हुन्न के होला कुनको भुल।। | भुमराको उही हुन्न के होला कुनको भुल।। | ||
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गुलाफको लगायेर विधिले लालमोहर। | गुलाफको लगायेर विधिले लालमोहर। | ||
दियेको हो कि वा बाग भृङ्गकै भोगखातिर?।। | दियेको हो कि वा बाग भृङ्गकै भोगखातिर?।। | ||
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भृङ्गले रस रित्त्याई चुसेर पुष्पवाटिका। | भृङ्गले रस रित्त्याई चुसेर पुष्पवाटिका। | ||
देखिन्छ वैरिविध्वस्त निर्धो देशसरी फिका।। | देखिन्छ वैरिविध्वस्त निर्धो देशसरी फिका।। | ||
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चीसो दक्षिणको हावा बहनाले सिरीसिरी। | चीसो दक्षिणको हावा बहनाले सिरीसिरी। | ||
लहरा पालुवा गर्छन् मन्द मन्द फिरीफिरी।। | लहरा पालुवा गर्छन् मन्द मन्द फिरीफिरी।। | ||
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तालका सुरमा कोही सिपालू नटको सरी। | तालका सुरमा कोही सिपालू नटको सरी। | ||
पुष्प पल्लवको निस्क्यो हावामा नृत्यमाधुरी।। | पुष्प पल्लवको निस्क्यो हावामा नृत्यमाधुरी।। | ||
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Revision as of 15:24, 9 April 2025
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काव्यका रसमा लोभी कवि झैं लट्ठ भैकन।
प्रत्येक पुष्पमा थाले भुमराहरु झुम्मिन।।
आनन्दी पुष्पमा कालो दुःखरेखासमानको।
तुच्छ त्यो भ्रमरश्रेणी के होला पात्र मानको?।।
गुणीका गुण झैं सारा रसधारा चुमीकन।
भूँभूँ गरी उडीदिन्छ स्वार्थी भ्रमरको गण।।
रसवेतनका लोभी यद्वा भ्रमरशिक्षक।
आफनू जीविका गर्छन् पढाई पुष्पबालक।।
हाँसी मुसुक्क बिस्तारै शिर हल्लाउँछन् फुल।
भुमराको उही हुन्न के होला कुनको भुल।।
गुलाफको लगायेर विधिले लालमोहर।
दियेको हो कि वा बाग भृङ्गकै भोगखातिर?।।
भृङ्गले रस रित्त्याई चुसेर पुष्पवाटिका।
देखिन्छ वैरिविध्वस्त निर्धो देशसरी फिका।।
चीसो दक्षिणको हावा बहनाले सिरीसिरी।
लहरा पालुवा गर्छन् मन्द मन्द फिरीफिरी।।
तालका सुरमा कोही सिपालू नटको सरी।
पुष्प पल्लवको निस्क्यो हावामा नृत्यमाधुरी।।