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पृथिवी छन् शुगारङ्गी पिपिराहरुले गरी। | पृथिवी छन् शुगारङ्गी पिपिराहरुले गरी। | ||
हरियो रेशमी सारी लायेकी प्रमदासरी।। | हरियो रेशमी सारी लायेकी प्रमदासरी।। | ||
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वनमा वागमा राम्रा पुष्प लाखौं थरी फुले। | वनमा वागमा राम्रा पुष्प लाखौं थरी फुले। | ||
कुसुमाऽऽकर यो नाम सार्थ पार्यो वसन्तले।। | कुसुमाऽऽकर यो नाम सार्थ पार्यो वसन्तले।। | ||
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आफनू शिल्पसौन्दर्यमहिमाको प्रदर्शिनी। | आफनू शिल्पसौन्दर्यमहिमाको प्रदर्शिनी। | ||
खोलिन् प्रकृतिले लाखौं फूलमा मनमोहिनी।। | खोलिन् प्रकृतिले लाखौं फूलमा मनमोहिनी।। | ||
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प्रत्येक पुष्पको रूप, रेखा, रङ्ग अनेक छ। | प्रत्येक पुष्पको रूप, रेखा, रङ्ग अनेक छ। | ||
तर सौन्दर्यको ज्योति उनमा भित्र एक छ।। | तर सौन्दर्यको ज्योति उनमा भित्र एक छ।। | ||
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बेली, जाई, जुही, चम्पा, चमेली, मधुमाधवी। | बेली, जाई, जुही, चम्पा, चमेली, मधुमाधवी। | ||
सबैमा भरियेको छ भरिलो मोहिनी छवि।। | सबैमा भरियेको छ भरिलो मोहिनी छवि।। | ||
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पुन्नाग, कामिनी, कीप, कल्की, बकुल, मालती। | पुन्नाग, कामिनी, कीप, कल्की, बकुल, मालती। | ||
साराको भिन्न भिन्नै छ वासना रूप आकृति।। | साराको भिन्न भिन्नै छ वासना रूप आकृति।। | ||
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बेगिन्ती पुष्पका भेद बेगिन्ती रूप वासना। | बेगिन्ती पुष्पका भेद बेगिन्ती रूप वासना। | ||
एकै प्रवाहमा चल्छन् धन्य हो विधिकल्पना।। | एकै प्रवाहमा चल्छन् धन्य हो विधिकल्पना।। | ||
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पृथ्वीको दिव्य सौन्दर्य नअटायेर पट्ट भै। | पृथ्वीको दिव्य सौन्दर्य नअटायेर पट्ट भै। | ||
फुटी बाहिर निस्क्यो कि पुष्पका रूपमा सबै?।। | फुटी बाहिर निस्क्यो कि पुष्पका रूपमा सबै?।। | ||
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तस्तै सुवासनापूर्ण पुष्पको तुल्य जीवनी। | तस्तै सुवासनापूर्ण पुष्पको तुल्य जीवनी। | ||
सृष्टिसौन्दर्यका निम्ति चाहन्छन् देवता पनि।। | सृष्टिसौन्दर्यका निम्ति चाहन्छन् देवता पनि।। | ||
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Revision as of 15:30, 9 April 2025
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पृथिवी छन् शुगारङ्गी पिपिराहरुले गरी।
हरियो रेशमी सारी लायेकी प्रमदासरी।।
वनमा वागमा राम्रा पुष्प लाखौं थरी फुले।
कुसुमाऽऽकर यो नाम सार्थ पार्यो वसन्तले।।
आफनू शिल्पसौन्दर्यमहिमाको प्रदर्शिनी।
खोलिन् प्रकृतिले लाखौं फूलमा मनमोहिनी।।
प्रत्येक पुष्पको रूप, रेखा, रङ्ग अनेक छ।
तर सौन्दर्यको ज्योति उनमा भित्र एक छ।।
बेली, जाई, जुही, चम्पा, चमेली, मधुमाधवी।
सबैमा भरियेको छ भरिलो मोहिनी छवि।।
पुन्नाग, कामिनी, कीप, कल्की, बकुल, मालती।
साराको भिन्न भिन्नै छ वासना रूप आकृति।।
बेगिन्ती पुष्पका भेद बेगिन्ती रूप वासना।
एकै प्रवाहमा चल्छन् धन्य हो विधिकल्पना।।
पृथ्वीको दिव्य सौन्दर्य नअटायेर पट्ट भै।
फुटी बाहिर निस्क्यो कि पुष्पका रूपमा सबै?।।
तस्तै सुवासनापूर्ण पुष्पको तुल्य जीवनी।
सृष्टिसौन्दर्यका निम्ति चाहन्छन् देवता पनि।।