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Revision as of 09:56, 9 April 2025
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श्री
श्रीगौरी-शङ्कराभ्यान्नम:
अथ
{{c|larger{{|वसन्त-विचार}}
१
हिमालमा गयो जाडो लोक साऽऽनन्द देखियो।
उदायो रसिलो राम्रो ऋतुराज वसन्त यो।।
२
नामशेष भयो सारा पुरानू शिशिरस्थिति।
लियो वसन्तले अर्कै नयाँ गौरवपद्धति।।
३
ऋतु हुन् अरु पाँचोटा, वसन्त ऋतुराज हो।
लोक गौरवले भर्नु यसैको मुख्य काज हो।।
४
वसन्तमा समानै छन् ठण्डी गर्मी दुवै गुण।
तुल्य तुल्य दया दण्ड राजाका हुन् विभूषण।।
५
देखिन्छ नाऽतिशीतोष्ण महिमा ऋतुराजको।
दयादण्डज्ञ राजाको नीति झैँ राजकाजको।।
६
पशुपक्षी लतावृक्षलगायत चराचर।
ऋतुनायकको गर्छ प्रेमले स्वाऽऽगताऽऽदर।।