Page:Ritubichar.pdf/7: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | <noinclude>{{start center block}}</noinclude> | ||
<poem> | <poem> | ||
७ | {{pcn|७}} | ||
सेतो कमलको छाता मञ्जरीमय चामर। | सेतो कमलको छाता मञ्जरीमय चामर। | ||
ऋतुराजत्वका चिह्न देखिन्छन् अति सुन्दर।। | ऋतुराजत्वका चिह्न देखिन्छन् अति सुन्दर।। | ||
८ | {{pcn|८}} | ||
भुमराहरु वीणाको दिव्य झङ्कार गर्दछन्। | भुमराहरु वीणाको दिव्य झङ्कार गर्दछन्। | ||
गुणगायक भै पक्षी गानमा तान भर्दछन्।। | गुणगायक भै पक्षी गानमा तान भर्दछन्।। | ||
९ | {{pcn|९}} | ||
बर्र बर्र लतावृक्ष लावा झैं फूल छर्दछन्। | बर्र बर्र लतावृक्ष लावा झैं फूल छर्दछन्। | ||
पुतली नर्तकीतुल्य नाचदै अघि सर्दछन्।। | पुतली नर्तकीतुल्य नाचदै अघि सर्दछन्।। | ||
१० | {{pcn|१०}} | ||
मलयाऽचलको वायु लगातार सिरीसिरी। | मलयाऽचलको वायु लगातार सिरीसिरी। | ||
कलिला पालुवारूप पङ्खा हम्कन्छ सुस्तरी।। | कलिला पालुवारूप पङ्खा हम्कन्छ सुस्तरी।। | ||
११ | {{pcn|११}} | ||
सजायेको छ सर्वत्र दिव्य सौन्दर्यको रथ। | सजायेको छ सर्वत्र दिव्य सौन्दर्यको रथ। | ||
शान्तिको जल छर्केको खुला आनन्दको पथ।। | शान्तिको जल छर्केको खुला आनन्दको पथ।। | ||
१२ | {{pcn|१२}} | ||
सारा वन बगैंचामा सजायेको छ आसन। | सारा वन बगैंचामा सजायेको छ आसन। | ||
ऋतुराज उतैबाट गर्छ त्यो शुभशासन।। | ऋतुराज उतैबाट गर्छ त्यो शुभशासन।। | ||
१३ | {{pcn|१३}} | ||
दिव्य आनन्दको रङ्ग, दिव्यकान्तितरङ्ग छ। | दिव्य आनन्दको रङ्ग, दिव्यकान्तितरङ्ग छ। | ||
दिव्य उन्नतिको ढङ्ग, दिव्य सारा प्रसङ्ग छ।। | दिव्य उन्नतिको ढङ्ग, दिव्य सारा प्रसङ्ग छ।। | ||
१४ | {{pcn|१४}} | ||
त्यो दिव्य रङ्ग पायेका लतावृक्ष वनस्पति। | त्यो दिव्य रङ्ग पायेका लतावृक्ष वनस्पति। | ||
देखिन्छन् योग्य नेताका रैती झैं उन्नताऽऽकृति।। | देखिन्छन् योग्य नेताका रैती झैं उन्नताऽऽकृति।। | ||
१५ | {{pcn|१५}} | ||
सानातिना सबैमाथि फैलियेको छ गौरव। | सानातिना सबैमाथि फैलियेको छ गौरव। | ||
योग्यको आड पायेको बिग्रला को कहाँ कब?।। | योग्यको आड पायेको बिग्रला को कहाँ कब?।। | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Revision as of 15:29, 9 April 2025
This page has not been proofread
७
सेतो कमलको छाता मञ्जरीमय चामर।
ऋतुराजत्वका चिह्न देखिन्छन् अति सुन्दर।।
८
भुमराहरु वीणाको दिव्य झङ्कार गर्दछन्।
गुणगायक भै पक्षी गानमा तान भर्दछन्।।
९
बर्र बर्र लतावृक्ष लावा झैं फूल छर्दछन्।
पुतली नर्तकीतुल्य नाचदै अघि सर्दछन्।।
१०
मलयाऽचलको वायु लगातार सिरीसिरी।
कलिला पालुवारूप पङ्खा हम्कन्छ सुस्तरी।।
११
सजायेको छ सर्वत्र दिव्य सौन्दर्यको रथ।
शान्तिको जल छर्केको खुला आनन्दको पथ।।
१२
सारा वन बगैंचामा सजायेको छ आसन।
ऋतुराज उतैबाट गर्छ त्यो शुभशासन।।
१३
दिव्य आनन्दको रङ्ग, दिव्यकान्तितरङ्ग छ।
दिव्य उन्नतिको ढङ्ग, दिव्य सारा प्रसङ्ग छ।।
१४
त्यो दिव्य रङ्ग पायेका लतावृक्ष वनस्पति।
देखिन्छन् योग्य नेताका रैती झैं उन्नताऽऽकृति।।
१५
सानातिना सबैमाथि फैलियेको छ गौरव।
योग्यको आड पायेको बिग्रला को कहाँ कब?।।