Page:Ritubichar.pdf/63: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | |||
<poem> | |||
{{pcn|}} | |||
रातमा घुसदा शीत दुःखीका भित्र आँतमा। | रातमा घुसदा शीत दुःखीका भित्र आँतमा। | ||
दाँतको झगडा हुन्छ को जाने कुन बातमा।। | दाँतको झगडा हुन्छ को जाने कुन बातमा।। | ||
{{pcn|}} | |||
कन्था बिकामका भद्दा थाङ्नामा मस्त भैकन। | कन्था बिकामका भद्दा थाङ्नामा मस्त भैकन। | ||
हालका कविजी जस्तै लागे गरिब खुम्चिन।। | हालका कविजी जस्तै लागे गरिब खुम्चिन।। | ||
{{pcn|}} | |||
कालो तरङ्गसङ्कीर्ण दह झैं पान्थको मन। | कालो तरङ्गसङ्कीर्ण दह झैं पान्थको मन। | ||
फोरी नयनको बाँध लाग्यो साह्रै छचल्किन।। | फोरी नयनको बाँध लाग्यो साह्रै छचल्किन।। | ||
{{pcn|}} | |||
घडीतुल्य पला लाग्छन्, वर्षतुल्य घडी सब। | घडीतुल्य पला लाग्छन्, वर्षतुल्य घडी सब। | ||
दुःखी दाह्रा किटी भोग्छ रातको शीत गौरव।। | दुःखी दाह्रा किटी भोग्छ रातको शीत गौरव।। | ||
{{pcn|}} | |||
खुम्च्याउँछन् सबैलाई काला दीर्घ विभावरी। | खुम्च्याउँछन् सबैलाई काला दीर्घ विभावरी। | ||
कठै घोर अविद्याका गह्रुङ्गा गठरीसरी।। | कठै घोर अविद्याका गह्रुङ्गा गठरीसरी।। | ||
{{pcn|}} | |||
जुन रातविषे हुन्छ दुःखीको प्राणसंशय। | जुन रातविषे हुन्छ दुःखीको प्राणसंशय। | ||
सुखीलाई उनै रात सुधाका लहरीमय।। | सुखीलाई उनै रात सुधाका लहरीमय।। | ||
{{pcn|}} | |||
सुखीका सुखको साक्षी दुःखको दुःखवर्धन। | सुखीका सुखको साक्षी दुःखको दुःखवर्धन। | ||
झुल्कन्छ रातमा झुल्का फुलाई खूप गर्धन।। | झुल्कन्छ रातमा झुल्का फुलाई खूप गर्धन।। | ||
{{pcn|}} | |||
दुःखी कौरव झैं खिन्न सुखी पाण्डव झैं बनी। | दुःखी कौरव झैं खिन्न सुखी पाण्डव झैं बनी। | ||
हेर्दछन् द्रौपदीचीरतुल्य हेमन्तयामिनी।। | हेर्दछन् द्रौपदीचीरतुल्य हेमन्तयामिनी।। | ||
{{pcn|}} | |||
पोखरीमा बिलायेकी देखी कुमुदिनीकन। | पोखरीमा बिलायेकी देखी कुमुदिनीकन। | ||
लागे कुमुदिनीनाथ करुणावश पग्लन।। | लागे कुमुदिनीनाथ करुणावश पग्लन।। | ||
</poem> | |||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Revision as of 09:34, 9 April 2025
This page has not been proofread
रातमा घुसदा शीत दुःखीका भित्र आँतमा।
दाँतको झगडा हुन्छ को जाने कुन बातमा।।
कन्था बिकामका भद्दा थाङ्नामा मस्त भैकन।
हालका कविजी जस्तै लागे गरिब खुम्चिन।।
कालो तरङ्गसङ्कीर्ण दह झैं पान्थको मन।
फोरी नयनको बाँध लाग्यो साह्रै छचल्किन।।
घडीतुल्य पला लाग्छन्, वर्षतुल्य घडी सब।
दुःखी दाह्रा किटी भोग्छ रातको शीत गौरव।।
खुम्च्याउँछन् सबैलाई काला दीर्घ विभावरी।
कठै घोर अविद्याका गह्रुङ्गा गठरीसरी।।
जुन रातविषे हुन्छ दुःखीको प्राणसंशय।
सुखीलाई उनै रात सुधाका लहरीमय।।
सुखीका सुखको साक्षी दुःखको दुःखवर्धन।
झुल्कन्छ रातमा झुल्का फुलाई खूप गर्धन।।
दुःखी कौरव झैं खिन्न सुखी पाण्डव झैं बनी।
हेर्दछन् द्रौपदीचीरतुल्य हेमन्तयामिनी।।
पोखरीमा बिलायेकी देखी कुमुदिनीकन।
लागे कुमुदिनीनाथ करुणावश पग्लन।।