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तृतीय सर्ग
मेनका;;$गमन
मेनका;;$गमन
(तोटक)
सुन बादल भौ सुन सूर्य भए ।
सुरद्वार खुल्यो सुनेको नभमा ॥
सुनको भव भो सुनको जलले ।
सुन तार बजाउँछ कल्कलले ॥
(१)
सुनको छ सिँढी सुरमार्गसरी ।
अलि लालगुलाब छरी हँसिलो ॥
झलमल्ल दुमुनन्वल ज्ज्वल कान्तितिर ।
दिन सुवर्णपुरीशिखर ॥
(२)
अब दिव्य हिरण्मयको प्रहर ।
दिन पुग्दछ स्वर्ग उडी सहजै ॥
सुन-पड्ख लिई सुनको चिडिया ।
मन देख्दछ क्या ! सुनको शहर ॥
(३)
सपना दिउँसै सब चक्षुअघि ।
सुनबाट सुगन्धसमान खुल्यो ॥
अब शीतल शान्त समीरणले ।
मन नग्दछ सुन्दर-मन्दिरमा ॥
(४)