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Latest revision as of 15:36, 25 May 2025
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वसन्त
१
आयो वसन्त अब, जादु अनन्त फैल्यो
सौन्दर्यको मृदुल मोहनि नै पलायो ।
फुल्नू पलाउनु छ खालि समीर चल्छ
आनन्दको लहरतुल्य सुवास छर्दै ॥
२
बैंसालु बाग हरियो, दिइ रङ्ग नाना
पाएर जागृति नवीन, फुलेर हाँस्यो ।
बोल्यो वसन्त अब कोकिलमा सुरीलो
मीठो रहस्य वनको दुइ शब्दभित्र ॥
३
क्या चारु शीतल प्रवाह हिलाइ चल्छ
हाँगा, जहाँ गई भँगेरि फुरुक्क पर्छे ।
क्या लालि लोचन-विलोचन त्यो गुलाबी
हेर्छ जहाँ पुतलि दिव्य कला फुलेको ॥