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पवित्र परमात्माको भक्तिमा सत्य भक्त | पवित्र परमात्माको भक्तिमा सत्य भक्त झैँ । | ||
शीतला जलधारामा भिजेको छ प्रजा | शीतला जलधारामा भिजेको छ प्रजा सधैँ ॥ | ||
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घरी दरदराऽऽकार घरी सुस्तै | घरी दरदराऽऽकार घरी सुस्तै सिमी-सिमी । | ||
जल-वर्षा लगातार गर्छ मेघ घुमी घुमी ॥ | |||
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चिरिन्छन् | चिरिन्छन् जल-धाराले नलिनी-पत्र चर्चरी । | ||
दुर्वाच्य-वाण-वर्षाले साधुको हृदयै-सरी ॥ | |||
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दिन रात दुवै कालो पारी धुम्धुमियो झरी । | दिन रात दुवै कालो पारी धुम्धुमियो झरी । | ||
मुख-पेट दुवै मैला भयेको दुर्जनै-सरी ॥ | |||
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झरीले | झरीले छोपि-राखेका वर्षाका दिन छन् सब । | ||
अविद्याले अँठ्यायेका | अविद्याले अँठ्यायेका जीव-तुल्य गत-प्रभ ॥ | ||
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अँध्यारो दिन देखेर चखेवी बिचरी चरी । | अँध्यारो दिन देखेर चखेवी बिचरी चरी । | ||
रुन्छे | रुन्छे व्याकुलता-साथ रात्रिको भ्रान्तिमा परी ॥ | ||
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जल-वर्षा गरी मेघ तृप्त छैन कुनै दिन । | |||
दाता देह छँदासम्म के गर्ला | दाता देह छँदासम्म के गर्ला मुष्टि-बन्धन ? | ||
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यताउता कतै कत्ति डग्दैन | यताउता कतै कत्ति डग्दैन घन-मण्डल । | ||
लब्ध-भूमि महात्माको चित्त झैँ अति-निश्चल ॥ | |||
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कहाँ सूर्य, कहाँ तारा, कहाँ | कहाँ सूर्य, कहाँ तारा, कहाँ नक्षत्र-नायक । | ||
देखिन्छन् कालले गर्दा जुन्किरी नै झकाझक ॥ | देखिन्छन् कालले गर्दा जुन्किरी नै झकाझक ॥ | ||
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Latest revision as of 23:05, 24 May 2025
३४
पवित्र परमात्माको भक्तिमा सत्य भक्त झैँ ।
शीतला जलधारामा भिजेको छ प्रजा सधैँ ॥
३५
घरी दरदराऽऽकार घरी सुस्तै सिमी-सिमी ।
जल-वर्षा लगातार गर्छ मेघ घुमी घुमी ॥
३६
चिरिन्छन् जल-धाराले नलिनी-पत्र चर्चरी ।
दुर्वाच्य-वाण-वर्षाले साधुको हृदयै-सरी ॥
३७
दिन रात दुवै कालो पारी धुम्धुमियो झरी ।
मुख-पेट दुवै मैला भयेको दुर्जनै-सरी ॥
३८
झरीले छोपि-राखेका वर्षाका दिन छन् सब ।
अविद्याले अँठ्यायेका जीव-तुल्य गत-प्रभ ॥
३९
अँध्यारो दिन देखेर चखेवी बिचरी चरी ।
रुन्छे व्याकुलता-साथ रात्रिको भ्रान्तिमा परी ॥
४०
जल-वर्षा गरी मेघ तृप्त छैन कुनै दिन ।
दाता देह छँदासम्म के गर्ला मुष्टि-बन्धन ?
४१
यताउता कतै कत्ति डग्दैन घन-मण्डल ।
लब्ध-भूमि महात्माको चित्त झैँ अति-निश्चल ॥
४२
कहाँ सूर्य, कहाँ तारा, कहाँ नक्षत्र-नायक ।
देखिन्छन् कालले गर्दा जुन्किरी नै झकाझक ॥