Page:Lalitya bhag 1 ra 2.pdf/37: Difference between revisions
Appearance
→Not proofread: Created page with "<noinclude>{{start center block}}</noinclude> <poem> {{pcn|(४८)}} त्रिपुराऽऽन्तक ! नाम नाथको ::त्रिपुरै बन्धन यो अनाथको । भगवन् ! किन यो नतोडने ::प्रभुकै भक्त म बद्ध छू भने ॥ {{pcn|(४९)}} ममतामय भङ्ग यो घना ::धतुरो मुख्य नाश 'अहम्'..." |
|||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Page status | Page status | ||
- | + | Validated | |
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 19: | Line 19: | ||
::प्रभु-बाहेक कहाँ छ नाथ को ? | ::प्रभु-बाहेक कहाँ छ नाथ को ? | ||
इति शिवपञ्चाशिका समाप्त | {{right|''॥ इति शिवपञ्चाशिका समाप्त ॥''}} | ||
</poem> | </poem> | ||
{{end center block}} | {{end center block}} |
Latest revision as of 11:38, 21 June 2025
This page has been validated
(४८)
त्रिपुराऽऽन्तक ! नाम नाथको
त्रिपुरै बन्धन यो अनाथको ।
भगवन् ! किन यो नतोडने
प्रभुकै भक्त म बद्ध छू भने ॥
(४९)
ममतामय भङ्ग यो घना
धतुरो मुख्य नाश 'अहम्' पना ।
उपहार दुवै खडा गरेँ
जगदीशान ! म पाउमा परेँ ॥
(५०)
जय नाथ ! शरण्य ! शङ्कर !
जय शम्भो ! शिव ! चन्द्रशेखर !
शरणाऽऽगत 'लेखनाथ' को
प्रभु-बाहेक कहाँ छ नाथ को ?
॥ इति शिवपञ्चाशिका समाप्त ॥