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ग्रीष्मको | ग्रीष्मको गरमी-भित्र घुमी खायेर चक्कर । | ||
कविको लेखनी दौड्यो | कविको लेखनी दौड्यो वर्षा-वर्णन-खातिर ॥ | ||
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प्रजाको हर्षका साथ जल वर्षा | प्रजाको हर्षका साथ जल वर्षा गरीकन । | ||
आई-पुगी प्रिया वर्षा, वर्ष-तुल्य बने दिन ॥ | |||
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समुद्र चिर्दै उत्रेका मत्त दिग्गजको | समुद्र चिर्दै उत्रेका मत्त दिग्गजको छटा । | ||
झल्काई गर्जंदै निस्क्यो चौतर्फी घनको | झल्काई गर्जंदै निस्क्यो चौतर्फी घनको घटा ॥ | ||
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सुन्दा दिगन्तमा दूर मेघको धीर | सुन्दा दिगन्तमा दूर मेघको धीर गर्जन । | ||
मानो-मयूर उफ्रन्छ लोकको दङ्ग भैकन ॥ | |||
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छोडी क्षितिजको रेखा | छोडी क्षितिजको रेखा सुस्त-सुस्तै उँभो-तिर । | ||
मैनाक-तुल्य त्यो कालो उठायो मेघले शिर ॥ | |||
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देखिन्छ नयनाऽऽनन्दी उसकी | देखिन्छ नयनाऽऽनन्दी उसकी कान्ति-माधुरी । | ||
टलक्क टल्कने चिल्लो नाल पर्वतको | टलक्क टल्कने चिल्लो नाल पर्वतको सरी ॥ | ||
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Latest revision as of 22:54, 24 May 2025
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अथ
वर्षा-विचार
१
ग्रीष्मको गरमी-भित्र घुमी खायेर चक्कर ।
कविको लेखनी दौड्यो वर्षा-वर्णन-खातिर ॥
२
प्रजाको हर्षका साथ जल वर्षा गरीकन ।
आई-पुगी प्रिया वर्षा, वर्ष-तुल्य बने दिन ॥
३
समुद्र चिर्दै उत्रेका मत्त दिग्गजको छटा ।
झल्काई गर्जंदै निस्क्यो चौतर्फी घनको घटा ॥
४
सुन्दा दिगन्तमा दूर मेघको धीर गर्जन ।
मानो-मयूर उफ्रन्छ लोकको दङ्ग भैकन ॥
५
छोडी क्षितिजको रेखा सुस्त-सुस्तै उँभो-तिर ।
मैनाक-तुल्य त्यो कालो उठायो मेघले शिर ॥
६
देखिन्छ नयनाऽऽनन्दी उसकी कान्ति-माधुरी ।
टलक्क टल्कने चिल्लो नाल पर्वतको सरी ॥