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नयन दिव्य सजीव झलक्क भो । | नयन दिव्य सजीव झलक्क भो । | ||
::हृदयमा रतिदीप झिलिक्क | ::हृदयमा रतिदीप झिलिक्क भो ॥ | ||
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धनु थियो | धनु थियो भ्रुकुटी शरदर्शन । | ||
::हृदय घायल पाउँछ | ::हृदय घायल पाउँछ स्पर्शन ॥ | ||
रुधिर लाल | रुधिर लाल भरेर गुलाबले । | ||
::रँग लियो | ::रँग लियो वनबीच वसन्तमा ॥ | ||
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बढ अघिल्तिर भन्दछ लेखनी । | बढ अघिल्तिर भन्दछ लेखनी । | ||
::बहुत चाख लिई तरुनो बनी ॥ | ::बहुत चाख लिई तरुनो बनी ॥ | ||
समय धेर गयो भुलुँला भनी । | |||
::त्रिभुवनै अब थाम्दछु तैपनि ॥ | |||
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Latest revision as of 19:40, 10 June 2025
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उहुहु, हेर मसक्क मुसुक्क भै ।
युवतिबाट झिलिक्क कटाक्ष गो ॥
नयन दिव्य सजीव झलक्क भो ।
हृदयमा रतिदीप झिलिक्क भो ॥
(७८)
धनु थियो भ्रुकुटी शरदर्शन ।
हृदय घायल पाउँछ स्पर्शन ॥
रुधिर लाल भरेर गुलाबले ।
रँग लियो वनबीच वसन्तमा ॥
(७९)
बढ अघिल्तिर भन्दछ लेखनी ।
बहुत चाख लिई तरुनो बनी ॥
समय धेर गयो भुलुँला भनी ।
त्रिभुवनै अब थाम्दछु तैपनि ॥
(८०)