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Latest revision as of 20:24, 21 June 2025
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तृतीय सर्ग
मेनकाऽऽगमन
मेनकाऽऽगमन
(तोटक)
सुन बादल भो सुन सूर्य भए ।
सुरद्वार खुल्यो सुनको नभमा ॥
सुनको भव भो सुनको जलले ।
सुन तार बजाउँछ कल्कलले ॥
(१)
सुनको छ सिँढी सुरमार्गसरी ।
अलि लाल गुलाब छरी हँसिलो ॥
झलमल्ल समुज्ज्वल कान्तितिर ।
दिन हेर्छ सुवर्णपुरीशिखर ॥
(२)
अब दिव्य हिरण्मयको प्रहर ।
दिन पुग्दछ स्वर्ग उडी सहजै ॥
सुन-पङ्ख लिई सुनको चिडिया ।
मन देख्दछ क्या ! सुनको शहर ॥
(३)
सपना दिउँसै सब चक्षुअघि ।
सुनबाट सुगन्धसमान खुल्यो ॥
अब शीतल शान्त समीरणले ।
मन लग्दछ सुन्दर-मन्दिरमा ॥
(४)