Jump to content

Page:Lalitya bhag 1 ra 2.pdf/103: Difference between revisions

From Nepali Proofreaders
Not proofread: Created page with "{{c|{{larger|'''अरूणोदय'''}}}} {{start center block}} <poem> {{pcn|(१)}} जय जगदीश्वर ! मनको रहमा शून्य गगनमय भित्री तहमा । पलपल शीतल कलना-लहरी निस्कन लागे ठहरी ठहरी ॥ {{pcn|(२)}} मधुर ध्वनिको श्रवण-विवरमा रेखा खिचियो पञ्चम सुर..."
 
Prty (talk | contribs)
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Page statusPage status
-
Not proofread
+
Proofread
Page body (to be transcluded):Page body (to be transcluded):
Line 5: Line 5:
{{pcn|(१)}}
{{pcn|(१)}}
जय जगदीश्वर ! मनको रहमा
जय जगदीश्वर ! मनको रहमा
शून्य गगनमय भित्री तहमा ।
::शून्य गगनमय भित्री तहमा ।
पलपल शीतल कलना-लहरी
पलपल शीतल कलना-लहरी
निस्कन लागे ठहरी ठहरी ॥
::निस्कन लागे ठहरी ठहरी ॥


{{pcn|(२)}}
{{pcn|(२)}}
मधुर ध्वनिको श्रवण-विवरमा
मधुर ध्वनिको श्रवण-विवरमा
रेखा खिचियो पञ्चम सुरमा ।
::रेखा खिचियो पञ्चम सुरमा ।
जति जति डुबिकन हेरेँ  भित्र
जति जति डुबिकन हेरेँ  भित्र
यति उति पाएँ  भाव पवित्र ॥
::यति उति पाएँ  भाव पवित्र ॥
</poem>
</poem>
<noinclude>{{end center block}}</noinclude>
<noinclude>{{end center block}}</noinclude>

Latest revision as of 17:30, 24 June 2025

This page has been proofread
अरूणोदय

(१)
जय जगदीश्वर ! मनको रहमा
शून्य गगनमय भित्री तहमा ।
पलपल शीतल कलना-लहरी
निस्कन लागे ठहरी ठहरी ॥

(२)
मधुर ध्वनिको श्रवण-विवरमा
रेखा खिचियो पञ्चम सुरमा ।
जति जति डुबिकन हेरेँ भित्र
यति उति पाएँ भाव पवित्र ॥