Page:Tarun tapasi.pdf/111: Difference between revisions
Appearance
→Not proofread: Created page with "<noinclude>{{start center block}}</noinclude> <poem> {{pcn|३०}} न ता देखें पर्दा दिवसरजनीको नगिचमा ::न ता सन्ध्या, तारा, ग्रह न त धरा सिन्धुबिचमा। न भास्यो आकाशै, न फिर अवकाशै अलिकति ::अहा कस्तो कस्तो अति अगम त्यो व्यापक चि..." |
|||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Page status | Page status | ||
- | + | Validated | |
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 2: | Line 2: | ||
<poem> | <poem> | ||
{{pcn|३०}} | {{pcn|३०}} | ||
न ता | न ता देखेँ पर्दा दिवस-रजनीको नगिचमा | ||
::न ता सन्ध्या, तारा, ग्रह न त धरा | ::न ता सन्ध्या, तारा, ग्रह न त धरा सिन्धुबिचमा । | ||
न भास्यो आकाशै, न फिर अवकाशै अलिकति | न भास्यो आकाशै, न फिर अवकाशै अलिकति | ||
::अहा कस्तो कस्तो अति अगम त्यो व्यापक | ::अहा ! कस्तो कस्तो अति अगम त्यो व्यापक चिति ॥ | ||
{{pcn|३१}} | {{pcn|३१}} | ||
म त्यो वेला फेरी गुरुचरण सम्झीकन | म त्यो वेला फेरी गुरुचरण सम्झीकन झुकेँ | ||
:: | ::झुकेँ माने सृष्टि-स्थिति-नियम भन्दा पर लुकेँ । | ||
कसो भो? के के भो? फगत म | कसो भो ? के के भो ? फगत म थियेँ गद्गद अति | ||
::अहो मैले मेरै उस बखतको सम्झिनँ | ::अहो ! मैले मेरै उस बखतको सम्झिनँ गति ॥ | ||
{{pcn|३२}} | {{pcn|३२}} | ||
खुशिसँग सब यस्तो | खुशिसँग सब यस्तो शान्ति-पीयूष-वृष्टि | ||
::श्रुतियुगबिच गर्दै टप्प चिम्लेर | ::श्रुतियुगबिच गर्दै टप्प चिम्लेर दृष्टि । | ||
मुनिवर चुप लागे पूर्ण आनन्दसाथ | मुनिवर चुप लागे पूर्ण आनन्दसाथ | ||
::भुलन शकिनँ मैले भाग्यको त्यो | ::भुलन शकिनँ मैले भाग्यको त्यो प्रभात ॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
{{end center block}} | {{end center block}} |
Latest revision as of 20:53, 18 June 2025
This page has been validated
३०
न ता देखेँ पर्दा दिवस-रजनीको नगिचमा
न ता सन्ध्या, तारा, ग्रह न त धरा सिन्धुबिचमा ।
न भास्यो आकाशै, न फिर अवकाशै अलिकति
अहा ! कस्तो कस्तो अति अगम त्यो व्यापक चिति ॥
३१
म त्यो वेला फेरी गुरुचरण सम्झीकन झुकेँ
झुकेँ माने सृष्टि-स्थिति-नियम भन्दा पर लुकेँ ।
कसो भो ? के के भो ? फगत म थियेँ गद्गद अति
अहो ! मैले मेरै उस बखतको सम्झिनँ गति ॥
३२
खुशिसँग सब यस्तो शान्ति-पीयूष-वृष्टि
श्रुतियुगबिच गर्दै टप्प चिम्लेर दृष्टि ।
मुनिवर चुप लागे पूर्ण आनन्दसाथ
भुलन शकिनँ मैले भाग्यको त्यो प्रभात ॥