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बहु- | बहु-विहगहरूले गुँज्छ जो चल्मलाइ । | ||
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वन छ कुसुमश्रीकाे देश जस्ताे हरियाे । | वन छ कुसुमश्रीकाे देश जस्ताे हरियाे । | ||
::कलकल जल | ::कलकल जल खेल्ने चल्मलाएर चाँदी ॥ | ||
सरस | सरस मृदु मुनाका स्वादजिज्ञासु साना । | ||
:: | ::दुधमुख मृगबच्चा खेल्दछन् नित्य नाना ॥ | ||
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मृग | मृग सुखसँग खेल्छन् हेर पाेथी कन्याई । | ||
:: | ::मखमल हरिया छन् मस्त उग्राइलाइ ॥ | ||
बहुल | बहुल विपिनबल्ली नाच्दछन् दिव्य हल्ली । | ||
::पिक नव-रव | ::पिक नव-रव बाेल्छन् मञ्जरीभित्र चिल्ली ॥ | ||
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शहर छ पशुकाे झैँ पत्रकाे छत्रदार । | |||
::किसलय-कलि | ::किसलय-कलि पन्ना लुर्किने रङ्गदार ॥ | ||
जल-लवसित | जल-लवसित मुक्ताहार झैँ झर्छ दाना । | ||
::विविध | ::विविध विटप खम्बा छन् अलङ्कार नाना ॥ | ||
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Latest revision as of 09:20, 15 June 2025
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द्वितीय सर्ग
(मालिनी)
विपिन छ बहु-शाखा-रम्य, ऊँचा विशाल ।
विटपदलहरुकाे शीतल स्निग्धजाल ॥
बहु-विहगहरूले गुँज्छ जो चल्मलाइ ।
पवन-चपल बास्नादार पुष्पादि पाई ॥
(१)
वन छ कुसुमश्रीकाे देश जस्ताे हरियाे ।
कलकल जल खेल्ने चल्मलाएर चाँदी ॥
सरस मृदु मुनाका स्वादजिज्ञासु साना ।
दुधमुख मृगबच्चा खेल्दछन् नित्य नाना ॥
(२)
मृग सुखसँग खेल्छन् हेर पाेथी कन्याई ।
मखमल हरिया छन् मस्त उग्राइलाइ ॥
बहुल विपिनबल्ली नाच्दछन् दिव्य हल्ली ।
पिक नव-रव बाेल्छन् मञ्जरीभित्र चिल्ली ॥
(३)
शहर छ पशुकाे झैँ पत्रकाे छत्रदार ।
किसलय-कलि पन्ना लुर्किने रङ्गदार ॥
जल-लवसित मुक्ताहार झैँ झर्छ दाना ।
विविध विटप खम्बा छन् अलङ्कार नाना ॥
(४)