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Latest revision as of 09:22, 12 June 2025
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(वियोगिनी)
सुन मिष्ठकथा सुवाषिणी,
मृदुमाधुर्यविलासमोहिनी ।
वनशीतलवारिवाहिनी
शिवसत्सुन्दरतानिनादिनी ॥
(४१)
सुन कोविदकालिदासको
कलकल्लोलकलास्वलङ्कृता ।
रचनाप्रतिबिम्बिनी कथा
सब यो भारतको प्रिय-ज्यथा ॥
(४२)
वसुधा हरियो गरी सुधा-
जल छम्की बहुरङ्ग-सम्पदा ।
युगनाममिलिन्दगुञ्जिनी
छ नदी झैँ कुसुमायना कथा ॥
(४३)
मरुपान्थ ! नदी छ शीतल
पसिना सुक्न ! सुगन्ध-मञ्जुल ।
मृदु वन्य हवा हिलाउँछ
जलकल्लोल प्रसन्न मञ्जरी ॥
(४४)
हिँड सुन्दरको विदेशमा
चिडिया आज बनूँ उडी त्यहाँ ।
ढकमक्क सुगन्ध छाउने,
वनमा नीड रचेर गाउने ॥
(४५)
कलिकल्मषहीन कालिनी
कनकाभा छ उषा चिरन्तनी ।
ऋषिजीवनले रमाइली
छ हरा शावकको वनस्थली ॥
(४६)