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→Not proofread: Created page with "<poem> सुन मिष्ठकथा सुवासिनी मृदुमाधुर्यविलासमोहिनी । वनशीतलवारिवाहिनी शिवसत्सुन्दरतानिनादिनी ॥ सुन कोविदकालिदासको कलकल्लोलकलास्वलङ्कृता । रचनाप्रतिबिम्बिनी कथा सब यो भारतको..." |
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सुन मिष्ठकथा | {{pcn|'''(वियोगिनी)'''}} | ||
मृदुमाधुर्यविलासमोहिनी । | सुन मिष्ठकथा सुवाषिणी, | ||
::मृदुमाधुर्यविलासमोहिनी । | |||
वनशीतलवारिवाहिनी | वनशीतलवारिवाहिनी | ||
::शिवसत्सुन्दरतानिनादिनी ॥ | |||
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सुन कोविदकालिदासको | सुन कोविदकालिदासको | ||
कलकल्लोलकलास्वलङ्कृता । | ::कलकल्लोलकलास्वलङ्कृता । | ||
रचनाप्रतिबिम्बिनी कथा | रचनाप्रतिबिम्बिनी कथा | ||
सब यो भारतको प्रिय ज्यथा ॥ | ::सब यो भारतको प्रिय-ज्यथा ॥ | ||
{{pcn|(४२)}} | |||
वसुधा हरियो गरी सुधा | वसुधा हरियो गरी सुधा- | ||
जल छम्की | ::जल छम्की बहुरङ्ग-सम्पदा । | ||
युगनाममिलिन्दगुञ्जिनी | युगनाममिलिन्दगुञ्जिनी | ||
छ | ::छ नदी झैँ कुसुमायना कथा ॥ | ||
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मरुपान्थ नदी छ शीतल | मरुपान्थ ! नदी छ शीतल | ||
पसिना सुक्न सुगन्ध मञ्जुल । | ::पसिना सुक्न ! सुगन्ध-मञ्जुल । | ||
मृदु वन्य हवा हिलाउँछ | मृदु वन्य हवा हिलाउँछ | ||
जलकल्लोल प्रसन्न मञ्जरी ॥ | ::जलकल्लोल प्रसन्न मञ्जरी ॥ | ||
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हिँड सुन्दरको विदेशमा | हिँड सुन्दरको विदेशमा | ||
चिडिया आज बनूँ उडी त्यहाँ । | ::चिडिया आज बनूँ उडी त्यहाँ । | ||
ढकमक्क सुगन्ध छाउने | ढकमक्क सुगन्ध छाउने, | ||
वनमा नीड रचेर गाउने ॥ | ::वनमा नीड रचेर गाउने ॥ | ||
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कलिकल्मषहीन कालिनी | कलिकल्मषहीन कालिनी | ||
कनकाभा छ उषा | ::कनकाभा छ उषा चिरन्तनी । | ||
ऋषिजीवनले रमाइली | ऋषिजीवनले रमाइली | ||
छ हरा शावकको वनस्थली ॥ | ::छ हरा शावकको वनस्थली ॥ | ||
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Latest revision as of 09:22, 12 June 2025
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(वियोगिनी)
सुन मिष्ठकथा सुवाषिणी,
मृदुमाधुर्यविलासमोहिनी ।
वनशीतलवारिवाहिनी
शिवसत्सुन्दरतानिनादिनी ॥
(४१)
सुन कोविदकालिदासको
कलकल्लोलकलास्वलङ्कृता ।
रचनाप्रतिबिम्बिनी कथा
सब यो भारतको प्रिय-ज्यथा ॥
(४२)
वसुधा हरियो गरी सुधा-
जल छम्की बहुरङ्ग-सम्पदा ।
युगनाममिलिन्दगुञ्जिनी
छ नदी झैँ कुसुमायना कथा ॥
(४३)
मरुपान्थ ! नदी छ शीतल
पसिना सुक्न ! सुगन्ध-मञ्जुल ।
मृदु वन्य हवा हिलाउँछ
जलकल्लोल प्रसन्न मञ्जरी ॥
(४४)
हिँड सुन्दरको विदेशमा
चिडिया आज बनूँ उडी त्यहाँ ।
ढकमक्क सुगन्ध छाउने,
वनमा नीड रचेर गाउने ॥
(४५)
कलिकल्मषहीन कालिनी
कनकाभा छ उषा चिरन्तनी ।
ऋषिजीवनले रमाइली
छ हरा शावकको वनस्थली ॥
(४६)