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::उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन गरी । | ::उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन गरी । | ||
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Latest revision as of 17:56, 11 June 2025
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सप्तम विश्राम
१
मुनिका उस सूक्ति-सिन्धुको
रस प्यूँदा हर-एक बिन्दुको ।
मनले गहिरो मनुष्यता
पहिचान्यो, तर त्यो कता कता ॥
२
हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन चरी
उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन गरी ।
चल्यो व्याधा, साथै पवन पनि तातो हररर,
बह्यो मानू सारा प्रकृति-पथमा भित्र जहर ॥