Page:Tarun tapasi.pdf/49: Difference between revisions
Appearance
→Not proofread: Created page with "{{c|{{larger|'''सप्तम विश्राम'''}}}} {{start center block}} <poem> {{pcn|१}} मुनिका उस सूक्तिसिन्धुको ::रस प्यूँदा हरएक बिन्दुको। मनले गहिरो मनुष्यता ::पहिचान्यो, तर त्यो कता कता।। {{pcn|२}} हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन..." |
|||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Page status | Page status | ||
- | + | Validated | |
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 4: | Line 4: | ||
<poem> | <poem> | ||
{{pcn|१}} | {{pcn|१}} | ||
मुनिका उस | मुनिका उस सूक्ति-सिन्धुको | ||
::रस प्यूँदा | ::रस प्यूँदा हर-एक बिन्दुको । | ||
मनले गहिरो मनुष्यता | मनले गहिरो मनुष्यता | ||
::पहिचान्यो, तर त्यो कता | ::पहिचान्यो, तर त्यो कता कता ॥ | ||
{{pcn|२}} | {{pcn|२}} | ||
हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन चरी | हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन चरी | ||
::उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन | ::उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन गरी । | ||
चल्यो व्याधा, साथै पवन पनि तातो हररर, | चल्यो व्याधा, साथै पवन पनि तातो हररर, | ||
::बह्यो मानू सारा | ::बह्यो मानू सारा प्रकृति-पथमा भित्र जहर ॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Latest revision as of 17:56, 11 June 2025
This page has been validated
सप्तम विश्राम
१
मुनिका उस सूक्ति-सिन्धुको
रस प्यूँदा हर-एक बिन्दुको ।
मनले गहिरो मनुष्यता
पहिचान्यो, तर त्यो कता कता ॥
२
हुँदोहोला तोलाभर फगत फुर्के जुन चरी
उही मारी, पापी कठिन करको लर्कन गरी ।
चल्यो व्याधा, साथै पवन पनि तातो हररर,
बह्यो मानू सारा प्रकृति-पथमा भित्र जहर ॥