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चल्छन् बिस्तार बिस्तारै कलिमा साधु | चल्छन् बिस्तार बिस्तारै कलिमा साधु झैँ गली ॥ | ||
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Latest revision as of 08:17, 25 May 2025
७
आफना जल-धाराले बढेको विश्वको खुशी ।
हेर्न लाग्यो कि वा मेघ खिस्स हाँसी परै बसी ?
८
रूप-रङ्गादिले शून्य सत्त्व-शेष कुनै धन ।
जीवन्मुक्त-सरी थाले हावा-माफिक खेलन ॥
९
सेता बादलका टुक्रा कुना-कानी अली अली ।
चल्छन् बिस्तार बिस्तारै कलिमा साधु झैँ गली ॥
१०
बडो उज्यालो आनन्दी भगवान् शङ्करै-सरी ।
हिमालमा पस्यो मेघ विश्व-बाधा सबै हरी ॥
११
मेघ झैँ विश्व-सेवामा लगाई शुद्ध जीवन ।
अन्त्यमा शान्ति जो लिन्छन् उनै हुन् मुक्तिभाजन ॥
१२
हरायी मेघका साथै उज्याली बिजुली पनि ।
भर्ता गयेपछी कान्ता रहन्थी अन्त के भनी ?
१३
जगद्व्यापी उही मेघ टुक्रा टुक्रा भईकन ।
हिन्दूसाम्राज्य झैँ आज गिर्यो पायिन्न देखन ॥
१४
मेघले अघि वर्षामा गरेका पुण्य-वृष्टिको ।
फलरूप नयाँ रङ्ग निस्क्यो कि सब सृष्टिको ?
१५
दिव्य सौभाग्य-धारामा नुहाई भइ निर्मल ।
निस्केको तुल्य देखिन्छ उज्यालो विश्वमण्डल ॥