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"नजा, नजा, त्यो परिपञ्चमा नजा, | |||
::म भित्र छू बाहिर छैन क्यै | ::म भित्र छू बाहिर छैन क्यै मजा" ॥ | ||
भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन | भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन | ||
::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
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सुनेर यस्तो म फरक्क | सुनेर यस्तो म फरक्क फर्कंदा | ||
::कुतर्कको तार मरक्क | ::कुतर्कको तार मरक्क मर्कंदा ॥ | ||
झलक्क झल्क्यो चटकी अगंपन | झलक्क झल्क्यो चटकी अगंपन | ||
::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
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दुरन्त त्यो भास दुरन्त जङ्गल | दुरन्त त्यो भास दुरन्त जङ्गल | ||
::दुरन्त त्यो सागर | ::दुरन्त त्यो सागर दुःख सङ्कुल ॥ | ||
गडेर हेर्दा तँ सिवाय देखिन | गडेर हेर्दा तँ सिवाय देखिन | ||
::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ |
Latest revision as of 10:11, 28 April 2025
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कहाँ थियो वास ? कठै !! कहाँ झरें ?
कसो हुँदा भीषण सिन्धुमा परें ?
भनी म लागें फिर वास संझन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६८
"नजा, नजा, त्यो परिपञ्चमा नजा,
म भित्र छू बाहिर छैन क्यै मजा" ॥
भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६९
सुनेर यस्तो म फरक्क फर्कंदा
कुतर्कको तार मरक्क मर्कंदा ॥
झलक्क झल्क्यो चटकी अगंपन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
७०
दुरन्त त्यो भास दुरन्त जङ्गल
दुरन्त त्यो सागर दुःख सङ्कुल ॥
गडेर हेर्दा तँ सिवाय देखिन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
७१