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Page:Buddhibinodko pahila binod.pdf/23: Difference between revisions

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<poem>
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यता महासिन्धु महा भयावह
यता महासिन्धु महा भयावह
असाध्य नीलो नभको उता दह ॥
::असाध्य नीलो नभको उता दह ॥
थियेन आधार, गुहार, सान्त्वन
थियेन आधार, गुहार, सान्त्वन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
{{pcn|६४}}
{{pcn|६४}}


कठै !! म सानू तृण झै बतासमा
कठै !! म सानू तृण झै बतासमा
भयें विपत्ता बिचरो अत्यासमा ॥
::भयें विपत्ता बिचरो अत्यासमा ॥
शकिन्न त्यो दुःख सबै बताउन
शकिन्न त्यो दुःख सबै बताउन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
{{pcn|६५}}
{{pcn|६५}}


कतै लडें, फूत्त कतै उचालियें
कतै लडें, फूत्त कतै उचालियें
कतै गडें, हूत्त त्त कतै म फालियें ॥
::कतै गडें, हूत्त कतै म फालियें ॥
कतै म घुप्लुक्क भयें, अतालियें
कतै म घुप्लुक्क भयें, अतालियें
कताकताबाट कतै पतालियें ! ॥
::कताकताबाट कतै पतालियें ! ॥
{{pcn|६६}}
{{pcn|६६}}


उठेर ठाडै म कतै बतासियें
उठेर ठाडै म कतै बतासियें
कतै गला बन्द भयो निसासियें ॥
::कतै गला बन्द भयो निसासियें ॥
कतै गरें घोर तरङ्ग लङ्घन
कतै गरें घोर तरङ्ग लङ्घन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
{{pcn|६७}}
{{pcn|६७}}
</poem>
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Latest revision as of 10:07, 28 April 2025

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यता महासिन्धु महा भयावह
असाध्य नीलो नभको उता दह ॥
थियेन आधार, गुहार, सान्त्वन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६४

कठै !! म सानू तृण झै बतासमा
भयें विपत्ता बिचरो अत्यासमा ॥
शकिन्न त्यो दुःख सबै बताउन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६५

कतै लडें, फूत्त कतै उचालियें
कतै गडें, हूत्त कतै म फालियें ॥
कतै म घुप्लुक्क भयें, अतालियें
कताकताबाट कतै पतालियें ! ॥
६६

उठेर ठाडै म कतै बतासियें
कतै गला बन्द भयो निसासियें ॥
कतै गरें घोर तरङ्ग लङ्घन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६७